KUTAP FOR WORSHIP AND ANCESTORS

“कुतप” (Kutapa / कुतप) शब्द का प्रयोग वैदिक ज्योतिष और पंचांग में मिलता है।

👉 अर्थ:
कुतप = कू (पृथ्वी) + तप (ऊर्जा/उष्णता) → सूर्य से पृथ्वी पर पड़ने वाला विशेष उष्ण/प्रभाव का समय।

📌 ज्योतिषीय प्रयोग में:

  • कुतप काल वह विशेष समय है जो सूर्योदय के लगभग 96 मिनट बाद से 144 मिनट (1 घंटा 36 मिनट से 2 घंटा 24 मिनट) तक माना जाता है।

  • इस समय को “अभिचार” और “शाप विमोचन” आदि कर्मों के लिए उपयुक्त बताया गया है।

  • विशेषकर श्राद्ध कर्म में “कुतप काल” को श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि माना जाता है कि इस समय पितृगण विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं और अन्न-जल स्वीकार करते हैं।

⚖️ सारांश:
कुतप काल = सूर्योदय से लेकर लगभग तीसरे प्रहर तक (1.5 से 2.5 घंटे बाद तक) का समय, जो पितृकर्म, श्राद्ध और विशेष अनुष्ठानों में अत्यंत शुभ व फलदायी माना गया है।

कुतप काल – धार्मिक महत्व

1. श्राद्ध एवं पितृकार्य

  • कुतप काल को पितृगण का प्रिय समय माना गया है।

  • मान्यता है कि इस समय पितरों की आत्माएँ पृथ्वी लोक के समीप आती हैं और श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान को आसानी से स्वीकार करती हैं।

  • यदि श्राद्ध इस समय किया जाए तो पितरों की विशेष कृपा मिलती है और परिवार में समृद्धि, संतति एवं शांति बनी रहती है।


2. अनुष्ठान व जप-तप

  • कुछ विशेष अभिचार, शाप-विमोचन तथा नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्ति के लिए भी यह समय श्रेष्ठ माना गया है।

  • सूर्य की किरणें इस समय पृथ्वी पर विशेष ऊर्जा संतुलन पैदा करती हैं, जिससे जप-तप और साधना का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।


3. दान और पुण्य कर्म

  • पितृपक्ष में इस समय तिल, जल, वस्त्र, अन्न आदि का दान करना विशेष फलकारी बताया गया है।

  • शास्त्रों के अनुसार कुतप काल में दिया गया दान पितरों तक तुरंत पहुँचता है और ऋण-मोचन का कारण बनता है।


4. वैज्ञानिक दृष्टिकोण

  • सूर्योदय के लगभग 2 घंटे बाद सूर्य की किरणों में अल्ट्रावायलेट और इंफ्रारेड किरणों का संतुलन सबसे अच्छा होता है।

  • यही कारण है कि इस समय की ऊर्जा को शास्त्रों ने पितृ और देवकर्म के लिए शुभ बताया है।


📌 सारांश

  • समय: सूर्योदय के बाद 96 मिनट से 144 मिनट तक (कुल 48 मिनट)

  • उपयोग:

    1. श्राद्ध और तर्पण

    2. पिंडदान

    3. जप-तप और साधना

    4. दान और पुण्यकर्म

  • फल: पितृ शांति, पारिवारिक समृद्धि, ऋण-मुक्ति, आध्यात्मिक उन्नति




कैसे तालिका तैयार की गई:

  • श्राद्ध-तिथियाँ (Shraddh Tithi):
    पितृपक्ष 2025 की अवधि — 7 सितंबर से 21 सितंबर — श्राद्ध तिथियों के अनुसार क्रमबद्ध है: प्रथम दिन में Purnima Shraddha, फिर क्रमशः Pratipada, Dwitiya…, और अंतिम दिन Sarva Pitru Amavasya The Economic TimesPanchang

  • कुतप काल (Kutap Kāla):
    प्रत्येक दिन सूर्योदय के लगभग 96 मिनट बाद कुतप शुरू होता है और 144 मिनट बाद समाप्त होता है। सूर्योदय का समय अनुमानित स्थानीय (टोरंटो) मान लिया गया है।


सारांश:

  • यह तालिका आपको दैनिक मार्गदर्शन देती है — आपने किस दिन श्राद्ध किया, और कुतप काल किस समय है।

  • श्राद्ध तिथि से सालाना कर्म (जैसे पिंडदान, तर्पण) की योजना बनाना और कुतप काल में अनुष्ठान करना सुविधाजनक रहेगा।

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