“कुतप” (Kutapa / कुतप) शब्द का प्रयोग वैदिक ज्योतिष और पंचांग में मिलता है।
👉 अर्थ:
कुतप = कू (पृथ्वी) + तप (ऊर्जा/उष्णता) → सूर्य से पृथ्वी पर पड़ने वाला विशेष उष्ण/प्रभाव का समय।
📌 ज्योतिषीय प्रयोग में:
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कुतप काल वह विशेष समय है जो सूर्योदय के लगभग 96 मिनट बाद से 144 मिनट (1 घंटा 36 मिनट से 2 घंटा 24 मिनट) तक माना जाता है।
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इस समय को “अभिचार” और “शाप विमोचन” आदि कर्मों के लिए उपयुक्त बताया गया है।
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विशेषकर श्राद्ध कर्म में “कुतप काल” को श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि माना जाता है कि इस समय पितृगण विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं और अन्न-जल स्वीकार करते हैं।
⚖️ सारांश:
कुतप काल = सूर्योदय से लेकर लगभग तीसरे प्रहर तक (1.5 से 2.5 घंटे बाद तक) का समय, जो पितृकर्म, श्राद्ध और विशेष अनुष्ठानों में अत्यंत शुभ व फलदायी माना गया है।